Hindi poetry on mother encapsulates the divine bond of motherhood, transcending time and culture. With heartfelt expressions in Hindi poems on mother, Hindi kavita on maa, and Maa par hindi kavita, this form of art beautifully captures the essence of the extraordinary relationship between a mother and her child. These verses eloquently celebrate the emotional bond, depicting the profound love, selflessness, and sacrifices that mothers make. Exploring the theme of motherhood in Hindi poetry, these compositions portray the nurturing nature of mothers and delve into the deep emotional connection between mother and child.
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Hindi Poetry on Mother
मेरे सर्वस्व की पहचान
अपने आँचल की दे छाँव
ममता की वो लोरी गाती
मेरे सपनों को सहलाती
गाती रहती, मुस्कराती जो
वो है मेरी माँ।
प्यार समेटे सीने में जो
सागर सारा अश्कों में जो
हर आहट पर मुड़ आती जो
वो है मेरी माँ।
दुख मेरे को समेट जाती
सुख की खुशबू बिखेर जाती
ममता की रस बरसाती जो
वो है मेरी माँ।
घुटनों से रेंगते-रेंगते,
कब पैरों पर खड़ी हुई,
तेरी ममता की छाँव में,
जाने कब बड़ी हुई,
काला-टीका दूध मलाई
आज भी सब कुछ वैसा है,
मैं ही मैं हूँ हर जगह,
माँ प्यार ये तेरा कैसा है?
सीधी-साधी, भोली-भाली,
मैं ही सबसे अच्छी हूँ,
कितनी भी हो जाऊ बड़ी,
“माँ!” मैं आज भी तेरी बच्ची हूँ..
जमीन पर जन्नत मिलती है कहाँ
दोस्तों ध्यान से देखा करो अपनी मा
जोड़ लेना चाहे लाखों करोड़ो की दौलत
पर जोड़ ना पाओगे कभी माँ सी सुविधा
आते हैं हर रोज फरिश्ते उस दरवाजे पर
रहती है खुशी से प्यारी माएं जहाँ जहाँ
छिन लाती है अपनी औलाद की खातिर खुशियाँ
कभी खाली नही जाती माँ के मुहं से निकली दुआ
वो लोग कभी हासिल नही कर सकते कामयाबी
जो बात बात पर माँ की ममता में ढूँढते है कमियां
माँ की तस्वीर ही बहुत,बड़े से बड़ा मन्दिर सजाने को
माँ से सुंदर दुनिया में नही होती कोई भी प्रतिमा
माँ का साथ यूँ चलता है ताउम्र आदमी संग
जैसे कदमों तले झुका रहता हो सदा आसमां
माँ दिखती तो है जिस्म के बाहर सदा
पर माँ है रूह में मौजुद बेपनाह होंसला
कभी गलती से भी बुरा ना सोचना माँ के बारे में
ध्यान रहे माँ ने ही रचा हर जीवन का घोंसला
मर कर भी बसी रहती है माँ धरती पर ही अ नीरज
कभी नही होता औलाद की खातिर उसके प्रेम का खात्मा
प्यारी प्यारी मेरी माँ
सारे जग से न्यारी माँ…
लोरी रोज सुनाती है,
थपकी दे सुलाती है….
जब उतरे आगन में धुप,
प्यार से मुझे जगाती है….
देती चीजे सारी माँ,
प्यारी प्यारी मेरी माँ….
ऊँगली पकड़ चलाती है,
सुबह-शाम घुमाती है….
ममता भरे हुए हातो से,
खाना रोज खिलाती है….
देवी जैसी मेरी माँ,
सारी जग से न्यारी माँ….
प्यारी प्यारी मरी माँ
प्यारी प्यारी मेरी माँ…
प्यारी प्यारी मेरी माँ (Best Poems on Mom)
मैं अपने छोटे मुख कैसे करूँ तेरा गुणगान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
माता कौशल्या के घर में जन्म राम ने पाया
ठुमक-ठुमक आँगन में चलकर सबका हृदय जुड़ाया
पुत्र प्रेम में थे निमग्न कौशल्या माँ के प्राण
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
दे मातृत्व देवकी को यसुदा की गोद सुहाई
ले लकुटी वन-वन भटके गोचारण कियो कन्हाई
सारे ब्रजमंडल में गूँजी थी वंशी की तान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
तेरी समता में तू ही है मिले न उपमा कोई
तू न कभी निज सुत से रूठी मृदुता अमित समोई
लाड़-प्यार से सदा सिखाया तूने सच्चा ज्ञान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
कभी न विचलित हुई रही सेवा में भूखी प्यासी
समझ पुत्र को रुग्ण मनौती मानी रही उपासी
प्रेमामृत नित पिला पिलाकर किया सतत कल्याण
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
‘विकल’ न होने दिया पुत्र को कभी न हिम्मत हारी
सदय अदालत है सुत हित में सुख-दुख में महतारी
काँटों पर चलकर भी तूने दिया अभय का दान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
हमारे हर मर्ज की दवा होती है माँ….
कभी डाँटती है हमें, तो कभी गले लगा लेती है माँ…..
हमारी आँखोँ के आंसू, अपनी आँखोँ मेँ समा लेती है माँ…..
अपने होठोँ की हँसी, हम पर लुटा देती है माँ……
हमारी खुशियोँ मेँ शामिल होकर, अपने गम भुला देती है माँ….
जब भी कभी ठोकर लगे, तो हमें तुरंत याद आती है माँ…
दुनिया की तपिश में, हमें आँचल की शीतल छाया देती है माँ…..
खुद चाहे कितनी थकी हो, हमें देखकर अपनी थकान भूल जाती है माँ….
प्यार भरे हाथोँ से, हमेशा हमारी थकान मिटाती है माँ…..
बात जब भी हो लजीज खाने की, तो हमें याद आती है माँ……
रिश्तों को खूबसूरती से निभाना सिखाती है माँ…….
लब्जोँ मेँ जिसे बयाँ नहीँ किया जा सके ऐसी होती है माँ…….
भगवान भी जिसकी ममता के आगे झुक जाते हैँ
खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर, अपनी आँख के इशारों से
माँ क्या शै होती, पूछ लेना कभी ये बात तुम प्यारी बहारों से
नही जरूरत माँ के रहते किसी और चाहत की हमें जमाने में
भीगे रहते है हम तो सदा, माँ की ममता के हसीन आबशारों से
माँ की दुआ तो हर हाल में कबूल होती है
माँ के रहते जन्नत जमीन पर वसूल होती है
फरिश्ते भी जिसकी चाहत पाने को तरसते
माँ तो वो अदभुत अनोखा प्यारा फूल होती है
तुम से ज्यादा है कौन चमकीला,पूछ लेना ये बात तुम सितारों से
खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर,अपनी आँख के इशारों से
आबशारों-झरने (Heart Touching Poems on Mom)
माना माँ की बोली कभी कभी कड़वी,खारी होती है
पर माँ हर गुड़ शक्कर,हर मीठे से प्यारी होती है
चाहे अनपढ़ ही क्यूं ना हो कोई भी माँ जमीन की
पर उसकी सीखों में जीवन जीने की बात छुपी सारी होती है
सुंदर होती है हर माँ तो,जमीन के हसीन से हसीन नजारों से
खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर,अपनी आँख के इशारों से
माँ तो जीती है हजारों सदियों तक,वो कभी भी ना मरती है
माँ हर रूह में,हर धड़कन में जीवन जीने का हौसला भरती है
हर देवता से बहुत ज्यादा बड़ी होती है माँ की शख्सियत,समझो इसे
रब भी वो कर नही सकता, जो औलाद की खातिर माँ करती है
बचा लेती है माँ अपनी औलाद को दुःख दर्द के बेदर्द अंगारो से
खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर, अपनी आँख के इशारों से
माँ क्या शै होती पूछ लेना कभी ये बात तुम प्यारी बहारों से
नही जरूरत माँ के रहते किसी और चाहत की हमें जमाने में
भीगे रहते है हम तो सदा, माँ की ममता के हसीन आबशारों से
बचपन में माँ कहती थी
बिल्ली रास्ता काटे,
तो बुरा होता है
रुक जाना चाहिए…
बचपन में माँ कहती थी
बिल्ली रास्ता काटे,
तो बुरा होता है
रुक जाना चाहिए…
मैं आज भी रुक जाता हूँ
कोई बात है जो डरा
देती है मुझे…
यकीन मानो,
मैं पुराने ख्याल वाला नहीं हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नहीं मानता…
मैं माँ को मानता हूँ।
मैं माँ को मानता हूँ।
दही खाने की आदत मेरी
गयी नहीं आज तक…
दही खाने की आदत मेरी
गयी नहीं आज तक..
चाहे हम बड़े हो जाये मगर हम अपनी माँ के लिए तो बच्चे ही है…
माँ कहती थी।
घर से दही खाकर निकलो
तो शुभ होता है..
मैं आज भी हर सुबह दही
खाकर निकलता हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नही मानता….
मैं माँ को मानता हूँ।
मैं माँ को मानता हूँ।
आज भी मैं अँधेरा देखकर डर जाता हूँ,
भूत-प्रेत के किस्से खोफा पैदा करते हैं मुझमें,
जादू, टोने, टोटके पर मैं यकीन कर लेता हूँ।
बचपन में माँ कहती थी
कुछ होते हैं बुरी नज़र लगाने वाले,
कुछ होते हैं खुशियों में सताने वाले…
यकीन मानों, मैं पुराने ख्याल वाला नहीं हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नहीं मानता….
मैं माँ को मानता हूँ।
मैं माँ को मानता हूँ।
मैंने भगवान को भी नहीं देखा जमीं पर
मैंने अल्लाह को भी नहीं देखा
लोग कहते है,
नास्तिक हूँ मैं
मैं किसी भगवान को नहीं मानता
लेकिन माँ को मानता हूँ
में माँ को मानता हूँ।।
हज़ारों दुखड़े सहती है माँ
फिर भी कुछ ना कहती है माँ
हमारा बेटा फले औ’ फूले
यही तो मंतर पढ़ती है माँ
हमारे कपड़े कलम औ’ कॉपी
बड़े जतन से रखती है माँ
बना रहे घर बँटे न आँगन
इसी से सबकी सहती है माँ
रहे सलामत चिराग घर का
यही दुआ बस करती है माँ
बढ़े उदासी मन में जब जब
बहुत याद में रहती है माँ
नज़र का कांटा कहते हैं सब
जिगर का टुकड़ा कहती है माँ
मनोज मेरे हृदय में हरदम
ईश्वर जैसी रहती है माँ
माँ के होते कभी नही होती जीवन में कठिनाई है
माँ ताउम्र बनकर रहती अपनी औलाद की परछाई है
दिखता है जिसमे केवल स्नेह माँ तो वो नजर है
कभी नही मरती कोई भी माँ, वो तो परी अजर अमर है
लोक परलोक की, माँ ही होती है सबसे खूबसूरत आत्मा
माँ के कदमों में सदा झुका रहता है पूर्ण परमात्मा
माँ ही धरा पर जीवन लिखने वाली अनोखी कलम है
समझो औरत का जन्म ही धरा पर जीवन का जन्म है
माँ राहत, माँ चाहत, माँ पहचान, माँ ही सम्मान है
माँ जरूरत, माँ मूरत, माँ निदान, माँ ही अभिमान है
माँ जमीन पर रहकर जन्नत का अहसास दिलाती है
माँ छोटे परिंदों को हौसलों का बड़ा आकाश दिलाती है
माँ सितार, माँ बहार माँ ही देवों की अदभुत बोली है
माँ अधिकार, माँ प्यार, माँ कंगन, माँ ही चंदन रोली है
माँ सदा सुखों से कराती अपनी औलाद की मुलाकात है
पहुंचाती जो रूह को सकून माँ वो चांदनी रात है
जो महकाती सांसो को माँ की चाहत वो कस्तूरी है
जिस पर है सारी धरा आश्रित माँ ही वो धुरी है
माँ का प्रेम ही दुनिया का सबसे सुगंधित चन्दन है
नीरज की ओर से हर माँ को शत शत वन्दन है
मेरे सर पर भी माँ की दुवाओं का साया होगा,
इसलिए समुन्दर ने मुझे डूबने से बचाया होगा
माँ की आघोष में लौट आया है वो बेटा फिर से..
शायद इस दुनिया ने उसे बहुत सताया होगा
अब उसकी मोहब्बत की कोई क्या मिसाल दे,
पेट अपना काट जब बच्चों को खिलाया होगा
की थी सकावत उमर भर जिसने उन के लिए
क्या हाल हुआ जब हाथ में कजा आया होगा
कैसे जन्नत मिलेगी उस औलाद को जिस ने
उस माँ से पैहले बीवी का फ़र्ज़ निभाया होगा
और माँ के सजदे को कोई शिर्क ना कह दे
इसलिए उन पैरों में एक स्वर्ग बनाया होगा
माँ के आँचल पर कविता (poem on maa in hindi)
जितना मैं पढता था, शायद उतना ही वो भी पढ़ती,
मेरी किताबों को वो मुझसे ज्यादा सहज कर रखती थी,
मेरी कलम, मेरी पढने की मेज़, उसपर रखी किताबे,
मुझसे ज्यादा उसे नाम याद रहते, संभालती थी किताबे,
मेरी नोट-बुक पर लिखे हर शब्द, वो सदा ध्यान से देखती,
चाहे उसकी समझ से परे रहे हो, लेकिन मेरी लेखनी देखती थी,
अगर पढ़ते पढ़ते मेरी आँख लग जाती, तो वो जागती रहती,
और जब मैं रात भर जागता, तब भी वो ही तो जागती रहती,
और मेरी परीक्षा के दिन, मुझसे ज्यादा उसे भयभीत करते थे,
मेरे परीक्षा के नियत दिन रहरह कर, उसे ही भ्रमित करते थे,
वो रात रात भर, मुझे आकर चाय काफी और बिस्कुट की दावत,
वो करती रहती सब तैयारी, बिना थके बिना रुके, बिन अदावात,
अगर गलती से कभी ज्यादा देर तक मैं सोने की कोशिश करता,
वो आकर मुझे जगा देती प्यार से, और मैं फिर से पढना शुरू करता,
मेरे परीक्षा परिणाम को, वो मुझसे ज्यादा खोजती रहती अखबार में,
और मेरे कभी असफल होने को छुपा लेती, अपने प्यार दुलार में,
जितना जितना मैं आगे बढ़ता रहा, शायद उतना वो भी बढती रही,
मेरी सफलता मेरी कमियाबी, उसके ख्वाबों में भी रंग भरती रही,
पर उसे सिर्फ एक ही चाह रही, सिर्फ एक चाह, मेरे ऊँचे मुकाम की,
मेरी कमाई का लालच नहीं था उसके मन में, चिंता रही मेरे काम की,
वो खुदा से बढ़कर थी पर मैं ही समझता रहा उसे नाखुदा की तरह जैसे,
वो मेरी माँ थी, जो मुझे जमीं से आसमान तक ले गयी, ना जाने कैसे…
क्या सीरत क्या सूरत थी
माँ ममता की मूरत थी
पाँव छुए और काम बने
अम्मा एक महूरत थी
बस्ती भर के दुख सुख में
एक अहम ज़रूरत थी
सच कहते हैं माँ हमको
तेरी बहुत ज़रूरत थी
माँ की ममता करुणा न्यारी,
जैसे दया की चादर
शक्ति देती नित हम सबको,
बन अमृत की गागर
साया बन कर साथ निभाती,
चोट न लगने देती
पीड़ा अपने उपर ले लेती,
सदा सदा सुख देती
माँ का आँचल सब खुशियों की,
रंगा रंग फुलवारी
इसके चरणों में जन्नत है,
आनन्द की किलकारी
अदभुत माँ का रूप सलोना,
बिलकुल रब के जैसा
प्रेम के सागर सा लहराता,
इसका अपनापन ऐसा….
हर एक साँस की कहानी है तू
परी कोई प्यारी आसमानी है तू
जीती मरती है तू औलाद की खातिर
सिर्फ ममता की भूखी दीवानी है तू
तेरी गोदी से बढकर नही कोई भी चमन
हमेशा फरिश्तों से घिरा रहता था तन
गुजरा है तेरे संग हर लम्हा जन्नत में
ताउम्र महसूस होती रहेगी तेरी चाहतों की तपन
इश्क करना फितरत है तेरी
हर देवता की जानी पहचानी है तू
तू अदभुत साँस बनकर जिस्म को महकाती
हसीन जन्नत खुद तेरे करीब आ जाती
अजीब कशिश है तेरी चाहतों में माँ
तू रोते बालक को पल में हंसाती
कोई नही तुझसे बढकर खुबसुरत जग में
हजारों परियों की रानी है तू
दुआ है तेरी कोख से हो हर बार जन्म
भूलकर भी कभी ना हो तुझे कोई गम
तुझ जैसा कोई और चाह नही सकता
तू ही सच्ची दिलबर तू ही सच्ची हमदम
हर करिश्मे से है तू बड़ी
खुदा की जमीन पर मेहरबानी है तू
हे जननी, हे जन्मभूमि, शत-बार तुम्हारा वंदन है।
सर्वप्रथम माँ तेरी पूजा, तेरा ही अभिनन्दन है।।
तेरी नदियों की कल-कल में सामवेद का मृदु स्वर है।
जहाँ ज्ञान की अविरल गंगा, वहीँ मातु तेरा वर है।
दे वरदान यही माँ, तुझ पर इस जीवन का पुष्प चढ़े।
तभी सफल हो मेरा जीवन, यह शरीर तो क्षण-भर है।
मस्तक पर शत बार धरुं मै, यह माटी तो चन्दन है।
सर्वप्रथम माँ तेरी पूजा, तेरा ही अभिनन्दन है।।१।।
क्षण-भंगुर यह देह मृत्तिका, क्या इसका अभिमान रहे।
रहे जगत में सदा अमर वे, जो तुझ पर बलिदान रहे।
सिंह-सपूतों की तू जननी, बहे रक्त में क्रांति जहाँ,
प्रेम, अहिंसा, त्याग-तपस्या से शोभित इन्सान रहे।
सदा विचारों की स्वतन्त्रता, जहाँ न कोई बंधन है।
सर्वप्रथम माँ तेरी पूजा, तेरा ही अभिनन्दन है।।
मेरी प्यारी माँ पर कविताएं (hindi poem on maa)
बाजुओं में खींच के आ जायेगी जैसे क़ायनात
अपने बच्चे के लिए ऐसे बाहें फैलाती है माँ
ज़िन्दगी के सफ़र मै गर्दिशों में धुप में
जब कोई साया नहीं मिलता तब बहुत याद आती है माँ
प्यार कहते हैं किसे, और ममता क्या चीज़ है,
कोई उन बच्चों से पूछे जिनकी मर जाती है माँ
सफा-ए- हस्ती पे लिखती है, असूल-ए- ज़िन्दगी,
इसलिए तो मक़सद-ए- इस्लाम कहलाती है माँ
जब ज़िगर परदेस जाता है ए नूर-ए- नज़र,
कुरान लेकर सर पे आ जाती है माँ
लेके ज़मानत में रज़ा-ए- पाक की,
पीछे पीछे सर झुकाए दूर तक जाती है माँ
काँपती आवाज़ में कहती है बेटा अलविदा
सामने जब तक रहे हाथों को लहराती है माँ
जब परेशानी में फँस जाते हैं हम परदेस में,
आंसुओं को पोंछने ख्वाबों में आ जाती है माँ
मरते दम तक आ सका न बच्चा घर परदेस से,
अपनी सारी दुआएं चौखट पे छोड़ जाती है माँ
बाद मरने के बेटे की खिदमत के लिए,
रूप बेटी का बदल के घर में आ जाती है माँ
साल के बाद
आया है यह दिन
करने लगे हैं सब याद
पल छिन
तुम ना भूली एक भी चोट या खुशी
ना तुमने भुलाया
मेरा कोई जन्म दिन
और मैं
जो तुम्हारी परछाई हूँ
वक्त की चाल-
रोज़गार की ढाल
सब बना लिए मैंने औज़ार
पर माँ!
नासमझ जान कर
माफ़ करना
करती हूँ तुमको प्यार
मैं हर पल
खामोशी तनहाई में
अर्पण किए
मैंने अपनी श्रद्धा के फूल तुमको
जानती हूँ
मिले हैं वो तुमको
क्योंकि
देखी है मैंने तुम्हारी निगाह
प्यार गौरव से भरी मुझ पर
जब भी मैं तुम्हारे बताए
उसूलों पर चलती हूँ चुपचाप
माँ!
मुझमें इतनी शक्ति भर देना
गौरव से सर उठा रहे तुम्हारा
कर जाऊँ ऐसा कुछ जीवन में
बन जाऊँ
हर माँ की आँख का सितारा
आज मदर्स डे के दिन
“अर्चना” कर रही हूँ मैं तुम्हारी
श्रद्धा, गौरव और विश्वास के चंद फूल लिए
बहुत याद आती है माँ
जब भी होती थी मैं परेशान
रात रात भर जग कर
तुम्हारा ये कहना कि
कुछ नहीं… सब ठीक हो जाएगा।
याद आता है…. मेरे सफल होने पर
तेरा दौड़ कर खुशी से गले लगाना।
याद आता है, माँ तेरा शिक्षक बनकर
नई-नई बातें सिखाना
अपना अनोखा ज्ञान देना।
याद आता है माँ
कभी दोस्त बन कर
हँसी मजाक कर
मेरी खामोशी को समझ लेना।
याद आता है माँ
कभी गुस्से से डाँट कर
चुपके से पुकारना
फिर सिर पर अपना
स्नेह भरा हाथ फेरना।
याद आता है माँ
बहुत अकेली हूँ
दुनिया की भीड़ में
फिर से अपना
ममता का साया दे दो माँ
तुम्हारा स्नेह भरा प्रेम
बहुत याद आता है माँ
माँ का आँचल कविता (Inspirational Poem on Mother in Hindi)
कभी जो गुस्से में आकर मुझे डांट देती
जो रोने लगूं में मुझे वो चुपाती
जो में रूठ जाऊं मुझे वो मनाती,
मेरे कपड़े वो धोती मेरा खाना बनाती
जो न खाऊं में मुझे अपने हाथों से खिलाती
जो सोने चलूँ में मुझे लोरी सुनाती,
वो सबको रुलाती वो सबको हंसाती
वो दुआओं से अपनी बिगड़ी किस्मत बनाती
वो बदले में किसी से कभी कुछ न चाहती,
जब बुज़ुर्गी में उसके दिन ढलने लगते
हम खुदगर्ज़ चेहरा अपना बदलने लगते
ऐश-ओ-इशरत में अपनी उसको भूलने लगते
दिल से उसके फिर भी सदा दुआएं निकलती
खुशनसीब हैं वो लोग जिनके पास माँ है।
माँ के आँचल के आसपास कभी भी बेरहम लू नही आती
मुर्ख है वो लोग तो जिन्हें माँ के किरदार से खुशबू नही आती
फैंक आते है माँ बाप को वृद्धाश्रम जबरदस्ती लावारिस बना कर
पर माँ बाप को कभी भी लावारिस औलाद में भी बदबू नही आती
मैं तो मांगता हूँ हर बार रब से रहमतें मजबूरों की खातिर
अपने जहन में खुद के लिये मांगने को कोई भी जुस्तजू नही आती
जो अमीर जुड़े है जमीन से,कभी भी पीछे नही हटते किसी की मदद को
कभी भी उनकी बातों से अमीरी की गंदी,मतलबी बू नही आती
गुजर जाता है हर वो दिन सकून से,चैनो अमन से,आराम से अपना
जिस दिन अ मेरी हसीन दिलरुबा ख्यालों में तू नही आती
कहते है लोग के नीरज बिन उर्दू वजन नही आता शायरी में
अरे हम लिखते है तबाही,जबकि हमको भाषा उर्दू नही आती
मेरी ही यादों में खोई
अक्सर तुम पागल होती हो
माँ तुम गंगा-जल होती हो!
जीवन भर दुःख के पहाड़ पर
तुम पीती आँसू के सागर
फिर भी महकाती फूलों-सा
मन का सूना संवत्सर
जब-जब हम लय गति से भटकें
तब-तब तुम मादल होती हो।
व्रत, उत्सव, मेले की गणना
कभी न तुम भूला करती हो
सम्बन्धों की डोर पकड कर
आजीवन झूला करती हो
तुम कार्तिक की धुली चाँदनी से
ज्यादा निर्मल होती हो।
पल-पल जगती-सी आँखों में
मेरी ख़ातिर स्वप्न सजाती
अपनी उमर हमें देने को
मंदिर में घंटियाँ बजाती
जब-जब ये आँखें धुंधलाती
तब-तब तुम काजल होती हो।
हम तो नहीं भगीरथ जैसे
कैसे सिर से कर्ज उतारें
तुम तो ख़ुद ही गंगाजल हो
तुमको हम किस जल से तारें
तुझ पर फूल चढ़ाएँ कैसे
तुम तो स्वयं कमल होती हो।
मुझको हर हाल में बख़्शेगा उजाला अपना
चाँद रिश्ते में तो लगता नहीं मामा अपना
मैंने रोते हुएपोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
हम परिन्दों कीतरह उड़ के तो जाने से रहे
इस जनम में तो न बदलेंगे ठिकाना अपना
धूप से मिल गए हैं पेड़ हमारेघर के
हम समझते थे कि काम आएगा बेटा अपना
सच बता दूँ तो ये बाज़ार-ए-मुहब्बत गिर जाए
मैंने जिस दाम में बेचा है ये मलबा अपना
आइनाख़ाने में रहने का ये इनआम मिला
एक मुद्दत से नहीं देखा है चेहरा अपना
तेज़ आँधी में बदल जाते हैं सारे मंज़र
भूल जाते हैं परिन्दे भी ठिकाना अपना..!
हर शै से ऊपर जग मे माँ होती है,
एक अक्षर मे छुपी पूरी दुनिया होती है।
जितने लाडों से पालती है माँ बच्चो को,
बच्चों की नजर मे उतनी कद्र कहाँ होती है।।
हर दुःख को अपने आँचल मे छुपाती,
खुद भूखी रहकर भी बच्चों को खिलाती।
गुणों के भंडारों से तर बतर होती है हर माँ
कभी ना अपने बच्चों को कुछ बुरा सिखाती।।
धरती पर माँ ही भगवान की पहचान होती है,
उसके बच्चों मे छुपी उसकी जान होती है।
कुछ देर जरुर बैठा करो अपनी माँ के पास,
माँ सिर्फ माँ नहीं माँ तो तजुर्बो की खान होती है।।
हर आफत हर परेशानी खुद दूर होती है,
माँ ही जमीं पर जन्नत से बहता नूर होती है।
गलती से भी कभी कोई गलती न करती वो,
वो तो बस कभी कभी बच्चों की जिद के आगे मजबूर होती है।।
सिर्फ एक माँ है जो कभी न नाराज होती है,
मूक बच्चे की माँ ही हमेशा आवाज होती है।
कोई भी सम्मान बड़ा नहीं होता माँ की सेवा के आगे
अरे लोगों सुखी माँ ही धरती पर सबसे बड़ा ताज होती है।।
लोगों चाहे मत संभालो अपनी जां को,
पर सम्भालों जरुर अपनी प्यारी माँ को।
हर काम मे खुद ब खुद हो जायेगी बरकत,
कभी हल्के मे मत लेना उसकी दुआ को।।
माँ के नाम (Poem on Mother in Hindi)
बचपन में अच्छी लगे यौवन में नादान।
आती याद उम्र ढ़ले क्या थी माँ कल्यान।।१।।
करना माँ को खुश अगर कहते लोग तमाम।
रौशन अपने काम से करो पिता का नाम।।२।।
विद्या पाई आपने बने महा विद्वान।
माता पहली गुरु है सबकी ही कल्यान।।३।।
कैसे बचपन कट गया बिन चिंता कल्यान।
पर्दे पीछे माँ रही बन मेरा भगवान।।४।।
माता देती सपन है बच्चों को कल्यान।
उनको करता पूर्ण जो बनता वही महान।।५।।
बच्चे से पूछो जरा सबसे अच्छा कौन।
उंगली उठे उधर जिधर माँ बैठी हो मौन।।६।।
माँ कर देती माफ़ है कितने करो गुनाह।
अपने बच्चों के लिए उसका प्रेम अथाह।।७।।
गहन अंधेरों को उजालों में बदलती है
औलाद के हर दुःख को पल में छलती है
मजबूर हो जाते है देव भी उसकी ममता के आगे
खुदा से ज्यादा धरती पर माँ की चलती है
फैला रूह में हर वक्त उजाला होता है
माँ का प्यार तो अमृत का प्याला होता है
सोचते ही हर दुआ खुद पूरी हो जाती है
माँ का रूप ही सबसे बड़ा शिवाला होता है
माँ ही फरिश्ता माँ ही पैगम्बर होती है
माँ दिखती है बाहर पर रूह के अंदर होती है
कोई श्रृंगार बड़ा नही माँ की मुस्कान के आगे
धरती पर माँ ही सबसे ज्यादा सुंदर होती है
निरंतर जो बहती माँ तो वो अदभुत नदी है
आजकल की बात छोड़ो माँ तो एक सदी है
हर शै छोटी होती है माँ के आकार के आगे
माँ सारे जहानो को मिलाकर भी बड़ी होती है
माँ से ही औलाद की औकात होती है
माँ ही धर्म माँ कर्म माँ ही जात होती है
माँ के रहते चाहे मत ध्यान करों किसी देव का
माँ के रूप में हर रोज देवों से मुलाकात होती है
जो काट देती दर्दों को माँ वो दुआ होती है
माँ अथाह सागर माँ प्रेम का कुआँ होती है
चाहे कितनी मर्जी देती हो माँ औलाद को गालियाँ
पर कभी ना माँ के लबों पर बददुआ होती है
लब्बो पर उसके कभी बदुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो कभी खफा नहीं होती
इस तरह वो मेरे गुन्हो को धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो बस रो देती है
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसु
मुदतो माँ ने नहीं धोया दुपटा अपना
अभी जिन्दा है मेरी माँ मुझे कुछ नहीं होगा
मै जब घर से निकलता हूँ तो दुआ भी साथ चलती है मेरे
जब भी कश्ती मेरी शेलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई खुआब में आ जाती है
ए अँधेरे देख ले तेरा मुंह कला हो गया
माँ ने आंखे खोल दी और घर में उजाला हो गया
मेरी खुआइश है की मै फिर से फ़रिश्ता हो जाऊ
माँ से इस तरह लिपटू की फिर से बच्चा हो जाऊ
माँ के यूँ कभी खुलकर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद होती है वहा इतनी नमी अच्छी नहीं होती
चूल्हे की
जलती रोटी सी
तेज आँच में जलती माँ!
भीतर-भीतर
बलके फिर भी
बाहर नहीं उबलती माँ!
धागे-धागे
यादें बुनती,
खुद को
नई रुई सा धुनती,
दिन भर
तनी ताँत सी बजती
घर-आँगन में चलती माँ!
सिर पर
रखे हुए पूरा घर
अपनी-
भूख-प्यास से ऊपर,
घर को
नया जन्म देने में
धीरे-धीरे गलती माँ!
फटी-पुरानी
मैली धोती,
साँस-साँस में
खुशबू बोती,
धूप-छाँह में
बनी एक सी
चेहरा नहीं बदलती माँ!
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